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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 14 Oct 2022 6:02 pm IST


कहीं क्रॉसचेक न कर ले!


वह खास समुदाय का पवित्र महीना था। मेरे घर के सामने वाले फ्लैट में इलाके के कई श्रद्धालु परिवार जुटते थे। रात भर वहां भक्ति, आस्था, समर्पण को मजबूती देने वाले सामूहिक कार्यक्रम चलते रहते थे। उन कार्यक्रमों का एक अहम हिस्सा था किसी ऐसी शख्सियत का प्रवचन, जिसे वहां उपस्थित लोग पहुंची हुई मानते थे। मुझे यह भी पता नहीं कि वह पहुंचे हुए संत सचमुच कार्यक्रम में उपस्थित थे या उनका रेकॉर्डेड भाषण चलाया जाता था, लेकिन रात में बिस्तर पर पड़े-पड़े अपनी नींद की कीमत पर भी उन्हें सुनना मुझे बड़ा दिलचस्प लगता था। उस प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा जाता था, ‘यह पूरी दुनिया उस सर्वोच्च शक्ति की ही बनाई हुई है, इसलिए किसी से नफरत मत करो। उनसे (एक खास समुदाय का नाम लेकर) भी नफरत नहीं करना है, उनमें से कोई मुसीबत में हो तो उसकी मदद कर दो, लेकिन उनके करीब मत जाओ, उनसे घुलो-मिलो मत। क्यों? क्योंकि तुम्हारा नुकसान हो जाएगा। पीतल और सोना अगर मिल जाएं तो पीतल का तो फायदा ही फायदा है, सोने का नुकसान हो जाता है।’

दिलचस्प ये बातें मुझे इसलिए लग रही थीं कि ठीक ऐसी ही बातें मैंने दूसरे समुदायों के पहुंचे हुए संतों के मुंह से भी सुन रखी थीं। इन्हें सुनते हुए मुझे पहले की सुनी उन बातों को गुनने में, उन बातों के पीछे की अनकही बातों को समझने में आसानी हो रही थी। सवाल मन में यह उठा कि हर समुदाय में श्रद्धा के ठेकेदार लोगों को दूसरी पूजा पद्धतियों के करीब जाने से क्यों रोकना चाहते हैं? जवाब मिला, शायद वे अपनी बातों का क्रॉसचेक किया जाना रोकने के लिए ऐसा करते हैं। ख्याल आया, यह सिर्फ धर्मों की बात नहीं है। धार्मिक समुदाय को छोड़ दें, सिर्फ क्रॉसचेक किए जाने के इस डर को लेकर बढ़ें तो एकदम अलग-अलग तरह के समूहों में इस प्रवृत्ति की मौजूदगी हैरान करती है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान के कट्टरपंथी युवाओं को हिंदुस्तान के बारे में जिस तरह की बातें बताई जाती हैं, वे भारत की एक सप्ताह की यात्रा में ही धुल-पुंछ जाती हैं। शायद इसलिए आतंकी संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए कई स्तरों पर मेहनत करते हैं कि पकड़े जाने की सूरत में उनके आतंकी जिंदा न रहें ताकि इस तरफ के लोगों से उनका कोई संपर्क न बन पाए।

यही प्रवृत्ति हाल में खुद को वैज्ञानिक सोच का नुमाइंदा मानने वाली एक बिरादरी में दिखी जब इसकी एक जानी मानी शख्सियत ने खुद को अपनी पार्टी से अलग करने का एलान किया। तब इस बिरादरी के बहुत से लोगों की सोशल मीडिया पर यह प्रतिक्रिया थी कि हम उस गद्दार को क्यों सुनें? मानो बगैर सुने ही वे समझ जाएंगे कि उसकी बातों में कहां, क्या और कितनी गड़बड़ी है या गड़बड़ी है भी कि नहीं!
सौजन्य से नवभारत टाइम्स